ek-nazm taken from website of shair,kavideepak sharma -
17th September 2008, 11:17 AM
ना जाने क्यों तेरी आवाज़ सुकुन देती है बहुत
और तेरे ख्याल से ही दिल हो शाबाद जाता है
जब भी सोचता हूँ अकेला जिंदगी की बाबत
चेहरा तेरा मुस्कुराता नजर के सामने आता है
मुझे मालूम नहीं क्या तेरा मेरा रिश्ता है क्योंकर
तेरी आवाज़ जिस्म से रूह तक उतरती जाती है
क्यों तेरी बातें मुझे अपनी -अपनी सी लगती हैं
क्यों तेरे तसव्वुर से नब्ज मेरी डूबती सी जाती है
आख़िर क्यों मेरे अहसास मेरा साथ नहीं देते
और क्यों मेरे जज्बात मेरे होकर भी नहीं मेरे
क्यों मेरा मन हर लम्हा याद करता है तुझको
क्यों मुझे घेरे रहते हैं तेरी चाहतों के घेरे
मेरी जान ! मुझे इसका सबब तो नहीं मालूम
ग़र इल्म हो तुझको तो मुझे भी इत्तला करना
मेरी उम्मीदों को शायद यकीन मिल जाये
अंधेरों में हूँ तन्हा , जिंदगी को उजला करना
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