[QUOTE=NakulG;494831]करता है बात अम्न की अक्सर लपेटकर
रखता है आसतीं में जो ख़ंजर लपेटकर
हर रोज़ घूमता है कड़ी धूप में फ़क़ीर
तावीज़ बेचता है मुक़द्दर लपेटकर
उसने ग़ज़ल कही कि निचोड़ा है दिल कोई
कागज़ में रख दिया है समन्दर लपेटकर
जो अश्क पोंछने को दिया था उसे रुमाल
रखता है अब फ़रेब का पत्थर लपेटकर
बादल गुज़र रहे हैं दबे पैर गाँव से
माँ ने रखे हैं धूप में बिस्तर लपेटकर
Brother ghazal-o-shayri ki itni knowledge to nahi hai... Par ye zaroor kehna chahunga ki aapki ghazal ke ye sher / ash-aar bohot kuch keh gaye mujhse...
Ye Jo AANSU ko FAREB bataya hai aapne,,,,, Dil ko chhu gaya.....
likhte rahiye... Aage bhi padhne ka khwaish-mand hu apki har ghazal....
God Bless You..