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yasir
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अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के -
1st December 2010, 05:00 AM
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
ऐसी बातें करना मुझसे, जो भाषाओँ के बंधन तोड़ दे
कहना तुम अपनी भी कही, मेरी बीती सुन भी लेना
बस इतना ही रखना ध्यान, बातें न हमें झकझोर दें
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
समेट लेना यह एक अश्क हर बीते फ़साने हर बीते लम्हे मे
हर शब्द हर खामा बीती हर एक भूली याद को निचोड़ दे
कुछ ऐसा असर हो हमारे तासुवुरों की सोहबत का
दीवारों मे पड़ रही दरारों के भी रुख मूड़ दे
यूँ छुए रूह हमारी की चरंगा चरंगा हर जर्रा खुर्शेदे-आलम-ताब
हर बेकस मज-ज़ुब रूह को उसके रब से जोड़ दे
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~$uper M0der@tor~
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1st December 2010, 08:34 AM
bahot khoob samyasar... acchee koshish rahi hai aapki.. subah subah is taaza ghazal ko padhkaar dil khush ho gaya.. yoon hi likhte rahen.. khush rahen.
shaad...
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RADHE RADHE
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1st December 2010, 02:43 PM
bahut khoob.............................................
Aapka Apna Ishk
'इश्क' के बदले इश्क चाहना तिजारत है
इज़हार किससे करें महबूब तो दिल में है
email: rkm179@gmail.com
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1st December 2010, 06:23 PM
Quote:
Originally Posted by samyasar1
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
ऐसी बातें करना मुझसे, जो भाषाओँ के बंधन तोड़ दे
कहना तुम अपनी भी कही, मेरी बीती सुन भी लेना
बस इतना ही रखना ध्यान, बातें न हमें झकझोर दें
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
समेट लेना यह एक अश्क हर बीते फ़साने हर बीते लम्हे मे
हर शब्द हर खामा बीती हर एक भूली याद को निचोड़ दे
कुछ ऐसा असर हो हमारे तासुवुरों की सोहबत का
दीवारों मे पड़ रही दरारों के भी रुख मूड़ दे
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bahut khub
gazab ka likha
dil ko choo gaya
समेट लेना यह एक अश्क हर बीते फ़साने हर बीते लम्हे मे
हर शब्द हर खामा बीती हर एक भूली याद को निचोड़ दे
कुछ ऐसा असर हो हमारे तासुवुरों की सोहबत का
दीवारों मे पड़ रही दरारों के भी रुख मूड़ दे
sada khush rahe
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yasir
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1st December 2010, 07:04 PM
Quote:
Originally Posted by sameer'shaad'
bahot khoob samyasar... acchee koshish rahi hai aapki.. subah subah is taaza ghazal ko padhkaar dil khush ho gaya.. yoon hi likhte rahen.. khush rahen.
shaad...
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bhut bhut shukriya shaad saheb
यूँ छुए रूह हमारी की चरंगा चरंगा हर जर्रा खुर्शेदे-आलम-ताब
हर बेकस मज-ज़ुब रूह को उसके रब से जोड़ दे
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yasir
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2nd December 2010, 04:53 PM
Quote:
Originally Posted by shakuntala vyas
bahut khub
gazab ka likha
dil ko choo gaya
समेट लेना यह एक अश्क हर बीते फ़साने हर बीते लम्हे मे
हर शब्द हर खामा बीती हर एक भूली याद को निचोड़ दे
कुछ ऐसा असर हो हमारे तासुवुरों की सोहबत का
दीवारों मे पड़ रही दरारों के भी रुख मूड़ दे
sada khush rahe
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bhut bhut shukriyaa zarra navazi ke liye
यूँ छुए रूह हमारी की चरंगा चरंगा हर जर्रा खुर्शेदे-आलम-ताब
हर बेकस मज-ज़ुब रूह को उसके रब से जोड़ दे
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yasir
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3rd December 2010, 03:53 AM
Quote:
Originally Posted by sameer'shaad'
bahot khoob samyasar... acchee koshish rahi hai aapki.. subah subah is taaza ghazal ko padhkaar dil khush ho gaya.. yoon hi likhte rahen.. khush rahen.
shaad...
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Quote:
Originally Posted by ISHK EK IBADAT
bahut khoob.............................................
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Originally Posted by shakuntala vyas
bahut khub
gazab ka likha
dil ko choo gaya
समेट लेना यह एक अश्क हर बीते फ़साने हर बीते लम्हे मे
हर शब्द हर खामा बीती हर एक भूली याद को निचोड़ दे
कुछ ऐसा असर हो हमारे तासुवुरों की सोहबत का
दीवारों मे पड़ रही दरारों के भी रुख मूड़ दे
sada khush rahe
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2 line orr jodne ki koshih ki hai plz see
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
ऐसी बातें करना मुझसे, जो भाषाओँ के बंधन तोड़ दे
कहना तुम अपनी भी कही, मेरी बीती सुन भी लेना
बस इतना ही रखना ख्याल , बातें न हमें झकझोर दें
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
समेट लेना यह एक अश्क हर बीते फ़साने हर बीते लम्हे मे
हर शब्द हर खामा बीती हर एक भूली याद को निचोड़ दे
कुछ ऐसा असर हो हमारे तासुवुरों की सोहबत का
दीवारों मे पड़ रही दरारों के भी रुख मोड़ दे
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
यूँ छुए रूह हमारी की चरंगा चरंगा हर जर्रा खुर्शेदे-आलम-ताब
हर बेकस मज-ज़ुब रूह को उसके रब से जोड़ दे
यूँ छुए रूह हमारी की चरंगा चरंगा हर जर्रा खुर्शेदे-आलम-ताब
हर बेकस मज-ज़ुब रूह को उसके रब से जोड़ दे
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3rd December 2010, 04:40 AM
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
ऐसी बातें करना मुझसे, जो भाषाओँ के बंधन तोड़ दे
कहना तुम अपनी भी कही, मेरी बीती सुन भी लेना
बस इतना ही रखना ख्याल , बातें न हमें झकझोर दें
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
समेट लेना यह एक अश्क हर बीते फ़साने हर बीते लम्हे मे
हर शब्द हर खामा बीती हर एक भूली याद को निचोड़ दे
कुछ ऐसा असर हो हमारे तासुवुरों की सोहबत का
दीवारों मे पड़ रही दरारों के भी रुख मोड़ दे
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
यूँ छुए रूह हमारी की चरंगा चरंगा हर जर्रा खुर्शेदे-आलम-ताब
हर बेकस मज-ज़ुब रूह को उसके रब से जोड़ दे
kya baat hai
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yasir
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4th December 2010, 04:06 PM
Quote:
Originally Posted by rahi123
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
ऐसी बातें करना मुझसे, जो भाषाओँ के बंधन तोड़ दे
कहना तुम अपनी भी कही, मेरी बीती सुन भी लेना
बस इतना ही रखना ख्याल , बातें न हमें झकझोर दें
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
समेट लेना यह एक अश्क हर बीते फ़साने हर बीते लम्हे मे
हर शब्द हर खामा बीती हर एक भूली याद को निचोड़ दे
कुछ ऐसा असर हो हमारे तासुवुरों की सोहबत का
दीवारों मे पड़ रही दरारों के भी रुख मोड़ दे
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
यूँ छुए रूह हमारी की चरंगा चरंगा हर जर्रा खुर्शेदे-आलम-ताब
हर बेकस मज-ज़ुब रूह को उसके रब से जोड़ दे
kya baat hai
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bhut bhut shukriya rahi saheb hosla bhadne ke liye
यूँ छुए रूह हमारी की चरंगा चरंगा हर जर्रा खुर्शेदे-आलम-ताब
हर बेकस मज-ज़ुब रूह को उसके रब से जोड़ दे
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4th December 2010, 10:16 PM
Badiya likha hai samyasar bhai ..
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
Nice expression .... Misra-e-saani bahut pyaara laga ....
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4th December 2010, 11:48 PM
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Originally Posted by samyasar1
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
ऐसी बातें करना मुझसे, जो भाषाओँ के बंधन तोड़ दे
कहना तुम अपनी भी कही, मेरी बीती सुन भी लेना
बस इतना ही रखना ध्यान, बातें न हमें झकझोर दें
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
समेट लेना यह एक अश्क हर बीते फ़साने हर बीते लम्हे मे
हर शब्द हर खामा बीती हर एक भूली याद को निचोड़ दे
कुछ ऐसा असर हो हमारे तासुवुरों की सोहबत का
दीवारों मे पड़ रही दरारों के भी रुख मूड़ दे
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samyasar ji. pehle to aapne jo do bhashaaon ko saath jodane ka kaam kiya wo behad khoobsurat aur rachnaatmak hai. phir aapke khayaalat bhee sundar bhavnaaon se chhalak rahe hain.
aapkee koshish aur hausale ko dheron daad aur shubhkaamnaayein. dua aur sneh ke saath .... zarraa
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yasir
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5th December 2010, 12:35 PM
Quote:
Originally Posted by yours.shahiq
Badiya likha hai samyasar bhai ..
अबकी बार जब मिलना तुम, मिलना मुझे दिल खोल के
Nice expression .... Misra-e-saani bahut pyaara laga ....
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bhut bhut shukriya shahiq bhai
यूँ छुए रूह हमारी की चरंगा चरंगा हर जर्रा खुर्शेदे-आलम-ताब
हर बेकस मज-ज़ुब रूह को उसके रब से जोड़ दे
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yasir
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5th December 2010, 12:36 PM
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Originally Posted by zarraa
samyasar ji. pehle to aapne jo do bhashaaon ko saath jodane ka kaam kiya wo behad khoobsurat aur rachnaatmak hai. phir aapke khayaalat bhee sundar bhavnaaon se chhalak rahe hain.
aapkee koshish aur hausale ko dheron daad aur shubhkaamnaayein. dua aur sneh ke saath .... zarraa
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bhut bhut shukriya zarraa sheb
यूँ छुए रूह हमारी की चरंगा चरंगा हर जर्रा खुर्शेदे-आलम-ताब
हर बेकस मज-ज़ुब रूह को उसके रब से जोड़ दे
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