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Originally Posted by Azaz AHMAD
दिल ए बेताब को अब तो करार मिल जाये
तलाश में है केद ए जाँ के दरार मिल जाये
रोक लेती है हमें ख्वाहिशें भी कभी कभी
ज़रूरी नही के हर जगह दीवार मिल जाये
सोचता हूँ के बेचने निकलूं टूटा हुआ दिल
क्या पता के फ़िर वो सरे बाजार मिल जाये
हमने हमेशा दुर से पूछी उसकी खैरो खबर
कभी पास नही गये के वो बीमार मिल जाये
तुम जो आओ तो मुरजाये फुल खिल उठ्ठेगे
तुम जो छू लो तो जख्मों को बहार मिल जाये
हर रोज लिया करो तलाशी अपने दिल की
ना जाने कब "शदीद" तुमको फरार मिल जाये
..Azaz AHMAD..
"SHADEED"
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Bahot khoob............................................. .........