|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
......since birth
Offline
Posts: 428
Join Date: Apr 2008
Location: bangalore
Rep Power: 21
|
18th October 2010, 05:03 PM
bahut dhanyabad is thread ko shuru karne ke liye...ye bahut achcha hai.
ibadat bhi khuda hai,bagavat bhi khuda hai
khuda baagi kahi hai,kahi baagi khuda hai.
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
हम नदिया की धार -
25th October 2010, 04:45 PM
हम नदिया की धार
हमारी मति निर्मल
हम स्वच्छन्द विचार
हमारी गति चंचल
युगातीत हम रहे
नही भाया बंधन
हम शाश्वत क्रम बहे
न स्वीकारा थंभन
हम निर्झर का प्यार
हमारे स्वर कलकल ।
हम नदिया की धार
हमारी मति निर्मल ।।
अभिनय बिखेरा है हमने
विष पीकर के
खुश रहने को कहा
आंख आंसू भर के
हम शिव के अवतार
हमारे कंठ गरल ।
हम नदिया की धार
हमारी मति निर्मल ।।
अब तक मांगा नही
किसी के निर्देशन
अपने पथ का आप
किया है अन्वेषन
हम रचना आधार
हमारी कृति सम्भल ।
हम नदिया की धार
हमारी मति निर्मल ।
हम उन्मुख हो चले
सृजन के पथ पर भी
और क्रांति के बने
कभी उदघोषक भी
हम है विविध प्रकार
हमारे रूप सकल ।
हम नदिया की धार
हमारी मति निर्मल ।
________________________
साभार: हम नदिया की धार द्वारा : संतोष सौनकिया
Last edited by Ayan_khan; 25th October 2010 at 05:06 PM..
Reason: edit
|
|
|
|
|
Shayri.com Moderator
Offline
Posts: 10,551
Join Date: Aug 2006
Location: INDIA
Rep Power: 59
|
23rd December 2010, 04:56 PM
किताब
हैरत है।
अक्षर नहीं हैं आज किताब पर
कहाँ चले गए अक्षर
एक साथ अचानक?
सबेरे सबेरे
काले बादल उठ रहे हैं चारों ओर से
मैली बोरियां ओढ़कर सड़क की पेटियों पर
गंदगी के पास सो रहे हैं बच्चे
हस्पताल के बाहर सड़क में
भयानक रोग से मर रही है एक युवती
पैबन्द लगे मैले कपड़ों में
हिमाल में ठंड से बचने की प्रयास में कुली
एक और प्रहर के भोजन के बदले
खुदको बेच रहे हैं लोग ।
मैं एक एक करके सोच रहा हूँ सब दृश्य
चेतना को जमकर कोड़े मारते हुए,
खट्टा होते हुए, पकते हुए
खो रहा हूँ खुद को अनुभूति के जंगल में ।
कितना पढूँ ? बारबार सिर्फ किताब
समय को टुकडों में फाड़कर
मैं आज दुःख और लोगों के जीवन को पढूंगा ।
अक्षर नहीं हैं किताब पर आज।
- भीष्म उप्रती
- अनुवाद - कुमुद अधिकारी
*~*Dhaval*~*....Ek Ehsaas...
|
|
|
|
|
Webeater
Offline
Posts: 716
Join Date: Jun 2010
Location: Bathinda-Punjab-India
Rep Power: 20
|
18th February 2011, 11:52 AM
nice collection...........................
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
21st February 2011, 03:40 AM
गृहकाज
आज रहने हो यह गृहकाज
प्राण! रहने हो यह गृहकाज!
आज जाने कैसी वातास
छोड़ती सौरभ-श्लभ उच्छ्वास,
प्रिये, लालस-सालस वातास,
जगा रोओं में सौ अभिलाष!
आज उर के स्तर-स्तर में, प्राण!
सहज सौ-सौ स्मृतियाँ सुकुमार,
दृगों में मधुर स्वप्न संसार,
मर्म में मदिर स्पृहा का भार!
शिथिल, स्वप्निल पंखड़ियाँ खोल,
आज अपलक कलिकाएँ बाल,
गूँजता भूला भौरा डोल,
सुमुखि, उर के सुख से वाचाल!
आज चंचल-चंचल मन प्राण,
आज रे, शिथिल-शिथिल तन-भार,
आज दो प्राणों का दिन-मान
आज संसार नही संसार!
आज क्या प्रिये सुहाती लाज!
आज रहने दो सब गृहकाज!
सुमित्रानंदन पन्त
I LOVE MY INDIA
Last edited by Ayan_khan; 21st February 2011 at 03:44 AM..
Reason: edit
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
21st February 2011, 03:48 AM
जीना अपने ही में
जीना अपने ही में
एक महान कर्म है
जीने का हो सदुपयोग
यह मनुज धर्म है
अपने ही में रहना
एक प्रबुद्ध कला है
जग के हित रहने में
सबका सहज भला है
जग का प्यार मिले
जन्मों के पुण्य चाहिए
जग जीवन को
प्रेम सिन्धु में डूब थाहिए
ज्ञानी बनकर
मत नीरस उपदेश दीजिए
लोक कर्म भव सत्य
प्रथम सत्कर्म कीजिए
सुमित्रानंदन पन्त
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
21st February 2011, 03:53 AM
चींटी
चींटी को देखा?
वह सरल, विरल, काली रेखा
तम के तागे सी जो हिल-डुल,
चलती लघु पद पल-पल मिल-जुल,
यह है पिपीलिका पाँति! देखो ना, किस भाँति
काम करती वह सतत, कन-कन कनके चुनती अविरत।
गाय चराती, धूप खिलाती,
बच्चों की निगरानी करती
लड़ती, अरि से तनिक न डरती,
दल के दल सेना संवारती,
घर-आँगन, जनपथ बुहारती।
चींटी है प्राणी सामाजिक,
वह श्रमजीवी, वह सुनागरिक।
देखा चींटी को?
उसके जी को?
भूरे बालों की सी कतरन,
छुपा नहीं उसका छोटापन,
वह समस्त पृथ्वी पर निर्भर
विचरण करती, श्रम में तन्मय
वह जीवन की तिनगी अक्षय।
वह भी क्या देही है, तिल-सी?
प्राणों की रिलमिल झिलमिल-सी।
दिनभर में वह मीलों चलती,
अथक कार्य से कभी न टलती।
सुमित्रानंदन पन्त
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
21st February 2011, 03:56 AM
'प्रार्थना'
जग के उर्वर आँगन में
बरसो ज्योतिर्मय जीवन!
बरसो लघु लघु तृण तरु पर
हे चिर अव्यय, चिर नूतन!
बरसो कुसुमों के मधु बन,
प्राणो में अमर प्रणय धन;
स्मिति स्वप्न अधर पलकों में
उर अंगो में सुख यौवन!
छू छू जग के मृत रज कण
कर दो तृण तरु में चेतन,
मृन्मरण बांध दो जग का
दे प्राणो का आलिंगन!
बरसो सुख बन, सुखमा बन,
बरसो जग जीवन के घन!
दिशि दिशि में औ' पल पल में
बरसो संसृति के सावन!
सुमित्रानंदन पन्त
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
Shayri.com Moderator
Offline
Posts: 10,551
Join Date: Aug 2006
Location: INDIA
Rep Power: 59
|
25th March 2011, 10:43 PM
यह दिया बुझे नहीं
- गोपाल सिंह नेपाली (Gopal Singh Nepali)
यह दिया बुझे नहीं
घोर अंधकार हो
चल रही बयार हो
आज द्वार–द्वार पर यह दिया बुझे नहीं
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।
शक्ति का दिया हुआ
शक्ति को दिया हुआ
भक्ति से दिया हुआ
यह स्वतंत्रता–दिया
रूक रही न नाव हो
जोर का बहाव हो
आज गंग–धार पर यह दिया बुझे नहीं
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है।
यह अतीत कल्पना
यह विनीत प्रार्थना
यह पुनीत भावना
यह अनंत साधना
शांति हो, अशांति हो
युद्ध, संधि, क्रांति हो
तीर पर¸ कछार पर¸ यह दिया बुझे नहीं
देश पर, समाज पर, ज्योति का वितान है।
तीन–चार फूल है
आस–पास धूल है
बांस है –बबूल है
घास के दुकूल है
वायु भी हिलोर दे
फूंक दे, चकोर दे
कब्र पर मजार पर, यह दिया बुझे नहीं
यह किसी शहीद का पुण्य–प्राण दान है।
झूम–झूम बदलियाँ
चूम–चूम बिजलियाँ
आंधिया उठा रहीं
हलचलें मचा रहीं
लड़ रहा स्वदेश हो
यातना विशेष हो
क्षुद्र जीत–हार पर, यह दिया बुझे नहीं
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है।
*~*Dhaval*~*....Ek Ehsaas...
|
|
|
|
|
Moderator
Offline
Posts: 15,199
Join Date: May 2006
Location: Chandigarh (Mohali)
Rep Power: 63
|
26th March 2011, 03:27 PM
OMG...................afsos ho raha hai ki aaj tak maiN es thread ko pad na saki....!
bahuttttttttttttttttttt khoobsurat rachnaye share ki hai aap sab ne.....hats off to u.
shukriya dil se
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
.....Sunita Thakur.....
यह कह कर मेरा दुश्मन मुझे हँसते हुए छोड़ गया
....के तेरे अपने ही बहुत हैं तुझे रुलाने के लिए...
|
|
|
|
|
Moderator
Offline
Posts: 15,199
Join Date: May 2006
Location: Chandigarh (Mohali)
Rep Power: 63
|
मां की याद -
26th March 2011, 03:32 PM
आज यूही बैठे बैठे आंखे भर आई हैं
कहीं से मां की याद दिल को छूने चली आई हैं
वो आंचल से उसका मुंह पोछना और भाग कर गोदी मे उठाना
रसोई से आती खुशबु आज फिर मुंह मी पानी ले आई है
बसा लिया है अपना एक नया संसार
बन गई हूं मैं खुद एक का अवतार
फिर भी न जाने क्यों आज मन उछल रहा है
बन जाऊं मै फिर से नादान्
सोचती हूं, है वो मीलों दूर बुनती कढाई अपने कमरे मे
नाक से फिसलती ऍनक की परवाह किये बिना
पर जब सुनेगी कि रो रही है उसकी बेटी
फट से कहेगी उठकर,"बस कर रोना अब तो हो गई है बडी"
फिर प्यार से ले लेगी अपनी बाहों मे मुझको
एक एह्सास दिला देगी खुदाई का इस दुनियां मे.
जाडे की नर्म धूप की तरह आगोश मे ले लिया उसने
इस ख्याल से ही रुक गये आंसू
और खिल उठी मुस्कान मेरे होठों पर
--nm
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
.....Sunita Thakur.....
यह कह कर मेरा दुश्मन मुझे हँसते हुए छोड़ गया
....के तेरे अपने ही बहुत हैं तुझे रुलाने के लिए...
|
|
|
|
|
Moderator
Offline
Posts: 15,199
Join Date: May 2006
Location: Chandigarh (Mohali)
Rep Power: 63
|
Nari -
26th March 2011, 03:40 PM
--Sumitra Nandan Pant
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
.....Sunita Thakur.....
यह कह कर मेरा दुश्मन मुझे हँसते हुए छोड़ गया
....के तेरे अपने ही बहुत हैं तुझे रुलाने के लिए...
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
26th March 2011, 05:38 PM
एक तितली उड़ी
मधु मास में
नीलाम्बर में ,
किसी की तलाश में
था जो सब से प्रिय उसको ,
और बिछड़ गया था
भीड़ भरे संसार में |
वह भटकी जंगल-जंगल
घास के मैदान में
बाग बगीचों में
और न जाने कहाँ-कहाँ |
जब वह नहीं मिल पाया
हुई बहुत उदास
खोजते-खोजते थकने लगी |
तभी संग पवन के
मंद-मंद सुरभि फैली
यही गंघ थी उसकी
जिसे वह खोज रही थी |
खोज हो गई समाप्त
जब मिली उससे वहाँ
सजे सजाए पुष्प गुच्छ में
पास गई गले लगाया
अपना सारा दुःख दर्द सुनाया
तब का जब थी नितांत अकेली
खोज रही थी अपने प्रिय को |
जब दोनों को मिलते देखा
जलन हुई अन्य पुष्पों को
पर एक ने समझाया
जब हैं दोनों ही प्रसन्न
तब जलन हो क्यूँ हम को
आओ ईश्वर से प्रार्थना करें
उन्हें आशीष देने के लिये
जो मिल गए हैं पुनः
इस भीड़ भरे संसार में |
आशा
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
26th March 2011, 05:41 PM
"स्वरचना "
कविता को नहीं,
स्वयं को रचती हूँ,
एक नए रंग में,
एक नए कोण से,
एक नए भाव में,
और...
इसी कोशिश में,
मन के किसी हिस्से को,
छूकर लौट आती हूँ,
जहाँ से चली थी,
वहीँ पर...
तो कभी ले आती हूँ,
स्मृति को,
एक रचनात्मक रूप देकर,
और बिखेर देती हूँ,
इन कोरे पन्नो पर...
यूँ ही...
एक चक्र सा,
चलता रहता है,
स्वरचना का,
अनवरत, निरंतर,
सोचती हूँ...
कहीं ये रचना,
अधूरी न लगे खुद को,
इसलिए गढती रहती हूँ,
स्वयं को स्वयं के भीतर... "संध्या शर्मा"
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
26th March 2011, 06:02 PM
फिर बसंत आना है - डा. कुमार विश्वास
तूफानी लहरें हों
अम्बर के पहरे हों,
पुरुवा के दामन पर दाग बहुत गहरे हों,
सागर के मांझी, मत मन को तू हारना,
जीवन के क्रम मैं जो खोया है पाना है.
पतझर का मतलब है
फिर बसंत आना है.
राजवंश रूठे तो
राज मुकुट टूटे तो
सीतापति राघव से राजमहल छूटे तो
आशा मत हार,
पर सागर के एक बार,
पत्थर मैं प्राण फूंक सेतु फिर बनाना है
अंधियारे के आगे, दीप फिर जलाना है
पतझर का मतलब है
फिर बसंत आना है.
घर-भर चाहे छोडे,
सूरज भी मुंह मोड़े
विदुर रहे मौन, छीने राज्य, स्वर्ण रथ, घोड़े
माँ का बस प्यार, सार गीता का साथ रहे,
पंचतत्व सौ पर हैं भारी बतलाना है
जीवन का राजसूय यज्ञ फिर कराना है
पतझर का मतलब है
फिर बसंत आना है
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
26th March 2011, 06:04 PM
चाँद ने कहा है - डा. कुमार विश्वास
चाँद ने कहा है, एक बार फिर चकोर से,
इस जनम में भी जलेगे तुम ही मेरी और से
हर जनम का अपना चाँद है, चकोर है अलग,
यूँ जनम जनम का एक ही मछेरा है मगर,
हर जनम की मछलियाँ अलग हैं डोर है अलग,
डोर ने कहा है मछलियों की पोर-पोर से
इस जनम में भी बिंधोगी तुम ही मेरी ओर से
इस जनम में भी जलोगी तुम ही मेरी ओर से
यूँ अनंत सर्ग और ये कथा अनंत है
पंक से जनम लिया है पर कमल पवित्र है
यूँ जनम जनम का एक ही वो चित्रकार है
हर जनम की तूलिका अलग, अलग ही चित्र है
ये कहा है तूलिका ने, चित्र के चरित्र से
इस जनम में भी सजोगे तुम ही मेरी कोर से
चाँद ने कहा है एक बार फिर चकोर से
इस जनम में भी जलोगी तुम ही मेरी ओर से
हर जनम के फूल हैं अलग, हैं तितलियाँ अलग
हर जनम की शोखियाँ अलग, हैं सुर्खियाँ अलग
ध्वँस और सृजन का एक राग है अमर, मगर
हर जनम का आशियाँ अलग, है बिजलियाँ अलग
नीड़ से कहा है बिजलियों ने जोर शोर से
इस जनम में भी जलोगी तुम ही मेरी ओर से
इस जनम में भी मिटोगे तुम ही मेरी ओर से
चाँद ने कहा है एक बार फिर चकोर से
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
26th March 2011, 06:09 PM
मधुयामिनी - डा. कुमार विश्वास
क्या अजब रात थी, क्या गज़ब रात थी
दंश सहते रहे, मुस्कुराते रहे
देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत
हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे
मन मे अपराध की, एक शंका लिए
कुछ क्रियाये हमें जब हवन सी लगीं
एक दूजे की साँसों मैं घुलती हुई
बोलियाँ भी हमें, जब भजन सी लगीं
कोई भी बात हमने न की रात-भर
प्यार की धुन कोई गुनगुनाते रहे
देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत
हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे
पूर्णिमा की अनघ चांदनी सा बदन
मेरे आगोश मे यूं पिघलता रहा
चूड़ियों से भरे हाथ लिपटे रहे
सुर्ख होठों से झरना सा झरता रहा
इस नशा सा अजब छा गया था की हम
खुद को खोते रहे तुमको पाते रहे
देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत
हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे
आहटों से बहुत दूर पीपल तले
वेग के व्याकरण पायलों ने गढ़े
साम-गीतों की आरोह - अवरोह में
मौन के चुम्बनी- सूक्त हमने पढ़े
सौंपकर उन अंधेरों को सब प्रश्न हम
इक अनोखी दीवाली नामाते रहे
देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत
हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
26th March 2011, 06:53 PM
मोरे अंगना, आये सांझ सकारे - डा कुमार विश्वास
तन मन महका जीवन महका
महक उठे घर-द्वारे
जब- जब सजना
मोरे अंगना, आये सांझ सकारे
खिली रूप की धुप
चटक गयीं कलियाँ, धरती डोली
मस्त पवन से लिपट के पुरवा, हौले-हौले बोली
छीनके मेरी लाज की चुनरी, टाँके नए सितारे
जब- जब सजना
मोरे अंगना, आये सांझ सकारे
सजना के अंगना तक पहुंचे
बातें जब कंगना की
धरती तरसे, बादल बरसे, मिटे प्यास मधुबन की
होठों की चोटों से जागे, तन के सुप्त नगारे
जब- जब सजना
मोरे अंगना, आये सांझ सकारे
नदिया का सागर से मिलने
धीरे-धीरे बढ़ना
पर्वत के आखरघाटी, वाली आँखों से पढ़ना
सागर सी बाहों मे आकर, टूटे सभी किनारे
जब- जब सजना
मोरे अंगना, आये सांझ सकारे
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
26th March 2011, 06:55 PM
तुमने जाने क्या पिला दिया. - डा.कुमार विश्वास
कैसे भूलूं वह एक रात, तन हरर्सिंगार मन-पारिजात,
छुअनें,सिहरन,पुलकन,कम्पन,
अधरो से अंतर हिला दिया,
तुमने जाने क्या पिला दिया.
तन की सारी खिडकिया खोलकर मन आया अगवानी मै,
चेतना और सन्यम भटके,मन की भोली नादानी मै,
थी तेज धार,लहरे अपार,भवरे थी कठिन, मगर फिर भी,
डरते-डरते मैं उतर गया,नदिया के गहरे पानी मै
नदिया ने भी जोबन-जीवन,
जाकर सागर मैं मिला दिया,
तुमने जाने क्या पिला दिया
जिन जख्मो की हो दवा सुलभ,उनके रिसते रहने से क्या,
जो बोझ बने जीवन-दर्श,न,उसमे पिसते रहने सेक्या.
हो सिंह्दवार परअंधकार,तो जगमग महल किसे दीखे
तन पर काई जम जाये तो,मन को रिसते रहने से क्या.
मेरी भटकन पी गये स्वयम,
मुझसे मुझको क्यो मिला दिया,
तुमने जाने क्या पिला दिया.
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
26th March 2011, 09:22 PM
होता मोती अनमोल
सागर में सीपी
सीपी में मोती ,
वह गहरे जल में जा बैठी
आचमन किया सागर जल से
स्नान किया खारे जल से
फिर भी कभी नहीं हिचकी
गहरे जल में रहने में
क्योंकि वह जान गई थी
एक मोती पल रहा था
तिल-तिल कर बढ़ रहा था
उसके तन में
पानी क्यूँ ना हो मोती में
कई परतों में छिपा हुआ था
जतन से सहेजा गया था
यही आभा उसकी
बना देती अनमोल उसे
बिना पानी वह कुछ भी नहीं
उसका कोई मूल्य नहीं
सारा श्रेय जाता सीपी को
जिसने कठिन स्थिति में
हिम्मत ज़रा भी नहीं हारी
हर वार सहा जलनिधि का
और आसपास के जीवों का
क्योंकि मोती पल रहा था
अपना विकास कर रहा था
उसके ही तन में
था बहुत अनमोल
सब के लिये |
आशा
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
26th March 2011, 09:23 PM
रंग बिरंगे फूल चुने
रंग बिरंगे फूल चुने ,
चुन-चुन कर माला बना ,
रोली चावल और नैवेद्य से ,
थाली खूब सजाई है ,
यह नहीं केवल आकर्षण ,
प्रबल भावना है मेरी ,
माला में गूँथे गये फूल ,
कई बागों से चुन-चुन ,
नाज़ुक हाथों से ,
सुई से धागे में पिरो कर ,
माला के रूप में लाई हूँ ,
भावनाओं का समर्पण ,
ध्यानमग्न रह ,
तुझ में ही खोये रहना ,
सुकून मन को देता है ,
शांति प्रदान करता है ,
जब भी विचलित होता मन ,
सानिध्य पा तेरा ,
स्थिर होने लगता है ,
नयी ऊर्जा आती है ,
नित्य प्रेरणा मिलती है ,
दुनिया के छल छिद्रों से ,
बहुत दूर रह ,
शांत मना रहती हूँ ,
भय मुक्त रहती हूँ ,
होता है संचार साहस का ,
है यही संचित पूँजी ,
इस पर होता गर्व मुझे ,
हे सृष्टि के रचने वाले ,
पूरे मन से सदा ,
तेरा स्मरण करती हूँ ,
तुझ पर ही ,
पूरी निष्ठा रखती हूँ !
आशा
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
26th March 2011, 09:28 PM
अनाथ
माँ मैं तेरी बगिया की ,
एक नन्हीं कली ,
क्यूँ स्वीकार नहीं किया तूने ,
कैसे भूल गई मुझे ,
छोड़ गई मझधार में
तू तो लौट गई
अपनी दुनिया में
मुझे झूला घर में छोड़ गई ,
क्या तुझे पता है ,
जब-जब आँख लगी मेरी ,
तेरी सूरत ही याद आई ,
तेरा स्पर्श कभी न भूल पाई ,
बस मेरा इतना ही तो कसूर था ,
तेरी लड़के की आस पूरी न हुई ,
और मैं तेरी गोद में आई ,
तू कितनी पाषाण हृदय हो गई ,
सारी नफरत, सारा गुस्सा ,
मुझ पर ही उतार डाला ,
मुझे रोता छोड़ गई ,
और फिर कभी न लौटी,
अब मैं बड़ी हो गई हूँ ,
अच्छी तरह समझती हूँ
मेरा भविष्य क्या होगा
मुझे कौन अपनाएगा ,
मैं अकेली
इतना बड़ा जहान ,
कब क्या होगा
इस तक का मुझे पता नहीं है ,
फिर भी माँ तेरा धन्यवाद
कि तूने मुझे जन्म दिया ,
मनुष्य जीवन समझने का
एक अवसर तो मुझे दिया !
आशा
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
26th March 2011, 09:40 PM
हैरान हूँ हैरान हूँ
सदियों से
मुठ्ठी में बंद
यादों के स्निग्ध,और
सुन्दर, सुनहरे मोती
अनायास ही अंगार की तरह
दहक कर
मेरी हथेलियों को
जला क्यों रहे हैं !
अंतरतम की
गहराइयों में दबे
मेरे सुषुप्त ज्वालामुखी में
घनीभूत पीड़ा का लावा
सहसा ही व्याकुल होकर
करवटें क्यों
बदलने लगा है !
वर्षों से संचित
आँसुओं की झील
की दीवारें सहसा
कमज़ोर होकर दरक
कैसे गयी हैं कि
ये आँसू प्रबल वेग के साथ
पलकों की राह
बाहर निकलने को
आतुर हो उठे हैं !
मेरे सारे जतन ,
सारे इंतजाम ,
सारी चेष्टाएं
व्यर्थ हुई जाती हैं
और मैं भावनाओं के
इस ज्वार में
उमड़ते घुमड़ते
लावे के साथ
क्षुद्र तिनके की तरह
नितांत असहाय
और एकाकी
बही जा रही हूँ !
क्या पता था
इस ज्वालामुखी को
इतने अंतराल के बाद
इस तरह से
फटना था और
मेरे संयम,
मेरी साधना,
मेरी तपस्या को
यूँ विफल करना था !
साधना वैद
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
26th March 2011, 09:43 PM
सब कुछ कह लेने के बाद
सब कुछ कह लेने के बाद
कुछ ऐसा है जो रह जाता है,
तुम उसको मत वाणी देना ।
वह छाया है मेरे पावन विश्वासों की,
वह पूँजी है मेरे गूँगे अभ्यासों की,
वह सारी रचना का क्रम है,
वह जीवन का संचित श्रम है,
बस उतना ही मैं हूँ,
बस उतना ही मेरा आश्रय है,
तुम उसको मत वाणी देना ।
वह पीड़ा है जो हमको, तुमको, सबको अपनाती है,
सच्चाई है-अनजानों का भी हाथ पकड़ चलना सिखलाती है,
वह यति है-हर गति को नया जन्म देती है,
आस्था है-रेती में भी नौका खेती है,
वह टूटे मन का सामर्थ है,
वह भटकी आत्मा का अर्थ है,
तुम उसको मत वाणी देना ।
वह मुझसे या मेरे युग से भी ऊपर है,
वह भावी मानव की थाती है, भू पर है,
बर्बरता में भी देवत्व की कड़ी है वह,
इसीलिए ध्वंस और नाश से बड़ी है वह,
अन्तराल है वह-नया सूर्य उगा लेती है,
नये लोक, नयी सृष्टि, नये स्वप्न देती है,
वह मेरी कृति है
पर मैं उसकी अनुकृति हूँ,
तुम उसको मत वाणी देना ।
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
28th March 2011, 12:37 AM
अंधड़ था, अंधा नहीं, उसे था दीख रहा,
वह तोड़-फोड़ मनमाना हँस-हँस सीख रहा,
पीपल की डाल हिली, फटी, चिंघाड़ उठी,
आँधी के स्वर में वह अपना मुँह फाड़ उठी।
उड़ गये परिन्दे कहीं,
साँप कोटर तज भागा,
लो, दलक उठा संसार,
नाश का दानव जागा।
कोयल बोल रही भय से जल्दी-जल्दी,
पत्तों की खड़-खड़ से शान्ति वनों से चल दी,
युगों युगों बूढ़े, इस अन्धड़ में देखो तो,
कितनी दौड, लगन कितनी, कितना साहस है,
इसे रोक ले, कहो कि किस साहस का वश है?
तिसपर भी मानव जीवित है,
हँसता है मनचाहा,
भाषा ने धिक्कारा हो,
पर गति ने उसे सराहा!
बन्दर-सा करने में रत है, वह लो हाई जम्प!
यह निर्माता हँसा और वह निकल गया भूकम्प।
माखनलाल चतुर्वेदी
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
28th March 2011, 12:39 AM
लीक पर वे चलें
लीक पर वे चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं ।
साक्षी हों राह रोके खड़े
पीले बाँस के झुरमुट,
कि उनमें गा रही है जो हवा
उसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं ।
शेष जो भी हैं-
वक्ष खोले डोलती अमराइयाँ;
गर्व से आकाश थामे खड़े
ताड़ के ये पेड़,
हिलती क्षितिज की झालरें;
झूमती हर डाल पर बैठी
फलों से मारती
खिलखिलाती शोख़ अल्हड़ हवा;
गायक-मण्डली-से थिरकते आते गगन में मेघ,
वाद्य-यन्त्रों-से पड़े टीले,
नदी बनने की प्रतीक्षा में, कहीं नीचे
शुष्क नाले में नाचता एक अँजुरी जल;
सभी, बन रहा है कहीं जो विश्वास
जो संकल्प हममें
बस उसी के ही सहारें हैं ।
लीक पर वें चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं ।
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
28th March 2011, 12:40 AM
सुर्ख़ हथेलियाँ
पहली बार
मैंने देखा
भौंरे को कमल में
बदलते हुए,
फिर कमल को बदलते
नीले जल में,
फिर नीले जल को
असंख्य श्वेत पक्षियों में,
फिर श्वेत पक्षियों को बदलते
सुर्ख़ आकाश में,
फिर आकाश को बदलते
तुम्हारी हथेलियों में,
और मेरी आँखें बन्द करते
इस तरह आँसुओं को
स्वप्न बनते -
पहली बार मैंने देखा ।
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
28th March 2011, 12:44 AM
कितना अच्छा होता है
एक-दूसरे को बिना जाने
पास-पास होना
और उस संगीत को सुनना
जो धमनियों में बजता है,
उन रंगों में नहा जाना
जो बहुत गहरे चढ़ते-उतरते हैं ।
शब्दों की खोज शुरु होते ही
हम एक-दूसरे को खोने लगते हैं
और उनके पकड़ में आते ही
एक-दूसरे के हाथों से
मछली की तरह फिसल जाते हैं ।
हर जानकारी में बहुत गहरे
ऊब का एक पतला धागा छिपा होता है,
कुछ भी ठीक से जान लेना
खुद से दुश्मनी ठान लेना है ।
कितना अच्छा होता है
एक-दूसरे के पास बैठ खुद को टटोलना,
और अपने ही भीतर
दूसरे को पा लेना ।
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
28th March 2011, 12:47 AM
अजनबी देश है यह
अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है
कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है
जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई,
नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है
होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त
द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है
शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा
कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है
देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं,
फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है
हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में
रास्ता है कि कहीं और चला जाता है
दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की
आप ही रोता है औ आप ही समझाता है ।
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
28th March 2011, 12:50 AM
फसल
हल की तरह
कुदाल की तरह
या खुरपी की तरह
पकड़ भी लूँ कलम तो
फिर भी फसल काटने
मिलेगी नहीं हम को ।
हम तो ज़मीन ही तैयार कर पायेंगे
क्रांतिबीज बोने कुछ बिरले ही आयेंगे
हरा-भरा वही करेंगें मेरे श्रम को
सिलसिला मिलेगा आगे मेरे क्रम को ।
कल जो भी फसल उगेगी, लहलहाएगी
मेरे ना रहने पर भी
हवा से इठलाएगी
तब मेरी आत्मा सुनहरी धूप बन बरसेगी
जिन्होने बीज बोए थे
उन्हीं के चरण परसेगी
काटेंगे उसे जो फिर वो ही उसे बोएंगे
हम तो कहीं धरती के नीचे दबे सोयेंगे ।
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
28th March 2011, 12:57 AM
सुनना श्रवण चाहते अब तक
भेद हृदय जो जान चुका है;
बुद्धि खोजती उन्हें जिन्हें जीवन
निज को कर दान चुका है।
खो जाने को प्राण विकल है
चढ़ उन पद-पद्मों के ऊपर;
बाहु-पाश से दूर जिन्हें विश्वास
हृदय का मान चुका है।
जोह रहे उनका पथ दृग,
जिनको पहचान गया है चिन्तन।
गायक, गान, गेय से आगे
मैं अगेय स्वन का श्रोता मन।
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
28th March 2011, 01:04 AM
जलकर चीख उठा वह कवि था,
साधक जो नीरव तपने में;
गाये गीत खोल मुँह क्या वह
जो खो रहा स्वयं सपने में?
सुषमाएँ जो देख चुका हूँ
जल-थल में, गिरि, गगन, पवन में,
नयन मूँद अन्तर्मुख जीवन
खोज रहा उनको अपने में।
अन्तर-वहिर एक छवि देखी,
आकृति कौन? कौन है दर्पण?
गायक, गान, गेय से आगे
मैं अगेय स्वन का श्रोता मन।
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
28th March 2011, 01:09 AM
चाह यही छू लूँ स्वप्नों की
नग्न कान्ति बढ़कर निज कर से;
इच्छा है, आवरण स्रस्त हो
गिरे दूर अन्तःश्रुति पर से।
पहुँच अगेय-गेय-संगम पर
सुनूँ मधुर वह राग निरामय,
फूट रहा जो सत्य सनातन
कविर्मनीषी के स्वर-स्वर से।
गीत बनी जिनकी झाँकी,
अब दृग में उन स्वप्नों का अंजन।
गायक, गान, गेय से आगे
मैं अगेय स्वन का श्रोता मन।
रामधारी सिंह "दिनकर"
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
28th March 2011, 01:13 AM
एक उदास, थका सा कमरा
कमरे की मेज़ पर
क़िताबों का ढेर
मार्खेज़ पर सवार
अमर्त्*य सेन का न्*याय का विचार
रस्किन बॉन्*ड का अकेला कमरा
कुंदेरा का मज़ाक, काफ़्का के पत्र
मोटरसाइकिल पर चिली के बियाबानों में भटकते
चे ग्*वेरा की डायरी
अपने देश में अपना देश खोज रही इज़ाबेला
सोफ़ी के मन में उठते सवाल
उन सवालों के जवाब
कुछ कहानियों के बिखरे ड्रॉफ़्ट
टूटी-फूटी कविताएँ
कुछ फुटकर विचार
और टूटे हैंडल वाला कॉफ़ी का एक पुराना मग
पिछले साल रानीखेत में
एक दोस्*त की खींची हिमालय की कुछ तस्*वीरें
एक पुराना पिक्*चर-पोस्*टकार्ड
पुरानी चिट्ठियों की एक फ़ाइल
जो मैंने लिखीं
जो मुझे लिखी गईं
ये सब
इस एकांत कमरे के साझेदार
भीतर पसरे सन्*नाटे में
सन्*नाटे जैसे मौन
मेरे साथ
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
7th April 2011, 04:56 PM
आ: धरती कितना देती है
मैने छुटपन मे छिपकर पैसे बोये थे
सोचा था पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे ,
रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी ,
और, फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूगा !
पर बन्जर धरती में एक न अंकुर फूटा ,
बन्ध्या मिट्टी ने एक भी पैसा उगला ।
सपने जाने कहां मिटे , कब धूल हो गये ।
मै हताश हो , बाट जोहता रहा दिनो तक ,
बाल कल्पना के अपलक पांवड़े बिछाकर ।
मै अबोध था, मैने गलत बीज बोये थे ,
ममता को रोपा था , तृष्णा को सींचा था ।
अर्धशती हहराती निकल गयी है तबसे ।
कितने ही मधु पतझर बीत गये अनजाने
ग्रीष्म तपे , वर्षा झूलीं , शरदें मुसकाई
सी-सी कर हेमन्त कँपे, तरु झरे ,खिले वन ।
औ' जब फिर से गाढी ऊदी लालसा लिये
गहरे कजरारे बादल बरसे धरती पर
मैने कौतूहलवश आँगन के कोने की
गीली तह को यों ही उँगली से सहलाकर
बीज सेम के दबा दिए मिट्टी के नीचे ।
भू के अन्चल मे मणि माणिक बाँध दिए हों ।
मै फिर भूल गया था छोटी से घटना को
और बात भी क्या थी याद जिसे रखता मन ।
किन्तु एक दिन , जब मै सन्ध्या को आँगन मे
टहल रहा था- तब सह्सा मैने जो देखा ,
उससे हर्ष विमूढ़ हो उठा मै विस्मय से ।
देखा आँगन के कोने मे कई नवागत
छोटी छोटी छाता ताने खडे हुए है ।
छाता कहूँ कि विजय पताकाएँ जीवन की;
या हथेलियाँ खोले थे वे नन्हीं ,प्यारी -
जो भी हो , वे हरे हरे उल्लास से भरे
पंख मारकर उडने को उत्सुक लगते थे
डिम्ब तोडकर निकले चिडियों के बच्चे से ।
निर्निमेष , क्षण भर मै उनको रहा देखता-
सहसा मुझे स्मरण हो आया कुछ दिन पहले ,
बीज सेम के रोपे थे मैने आँगन मे
और उन्ही से बौने पौधौं की यह पलटन
मेरी आँखो के सम्मुख अब खडी गर्व से ,
नन्हे नाटे पैर पटक , बढ़ती जाती है ।
तबसे उनको रहा देखता धीरे धीरे
अनगिनती पत्तो से लद भर गयी झाडियाँ
हरे भरे टँग गये कई मखमली चन्दोवे
बेलें फैल गई बल खा , आँगन मे लहरा
और सहारा लेकर बाड़े की टट्टी का
हरे हरे सौ झरने फूट ऊपर को
मै अवाक रह गया वंश कैसे बढता है
यह धरती कितना देती है । धरती माता
कितना देती है अपने प्यारे पुत्रो को
नहीं समझ पाया था मै उसके महत्व को
बचपन मे , छि: स्वार्थ लोभवश पैसे बोकर
रत्न प्रसविनि है वसुधा , अब समझ सका हूँ ।
इसमे सच्ची समता के दाने बोने है
इसमे जन की क्षमता के दाने बोने है
इसमे मानव ममता के दाने बोने है
जिससे उगल सके फिर धूल सुनहली फसले
मानवता की - जीवन क्ष्रम से हँसे दिशाएं
हम जैसा बोएँगे वैसा ही पाएँगे ।
सुमित्रानंदन पंत
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
tanha musafir
Offline
Posts: 214
Join Date: Oct 2010
Location: yours heart
Rep Power: 18
|
7th April 2011, 10:50 PM
किसने बनाए
वर्णमाला के अक्षर
ये काले-काले अक्षर
भूरे-भूरे अक्षर
किसने बनाए
खड़िया ने
चिड़िया के पंख ने
दीमकों ने
ब्लैकबोर्ड ने
किसने
आख़िर किसने बनाए
वर्णमाला के अक्षर
'मैंने...मैंने'-
सारे हस्ताक्षरों को
अँगूठा दिखातेहुए
धीरे से बोला
एक अँगूठे का निशान
और एक सोख़्ते में
ग़ायब हो गया
केदारनाथ सिंह
I LOVE MY INDIA
|
|
|
|
|
Shayri.com Moderator
Offline
Posts: 10,551
Join Date: Aug 2006
Location: INDIA
Rep Power: 59
|
6th December 2012, 11:13 AM
आग की भीख
- रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar)
धुँधली हुई दिशाएँ, छाने लगा कुहासा
कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँसा
कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है
मुंह को छिपा तिमिर में क्यों तेज सो रहा है
दाता पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे
बुझती हुई शिखा को संजीवनी पिला दे
प्यारे स्वदेश के हित अँगार माँगता हूँ
चढ़ती जवानियों का श्रृंगार मांगता हूँ
बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है
कोई नहीं बताता, किश्ती किधर चली है
मँझदार है, भँवर है या पास है किनारा?
यह नाश आ रहा है या सौभाग्य का सितारा?
आकाश पर अनल से लिख दे अदृष्ट मेरा
भगवान, इस तरी को भरमा न दे अँधेरा
तमवेधिनी किरण का संधान माँगता हूँ
ध्रुव की कठिन घड़ी में, पहचान माँगता हूँ
आगे पहाड़ को पा धारा रुकी हुई है
बलपुंज केसरी की ग्रीवा झुकी हुई है
अग्निस्फुलिंग रज का, बुझ डेर हो रहा है
है रो रही जवानी, अँधेर हो रहा है
निर्वाक है हिमालय, गंगा डरी हुई है
निस्तब्धता निशा की दिन में भरी हुई है
पंचास्यनाद भीषण, विकराल माँगता हूँ
जड़ताविनाश को फिर भूचाल माँगता हूँ
मन की बंधी उमंगें असहाय जल रही है
अरमान आरजू की लाशें निकल रही हैं
भीगी खुशी पलों में रातें गुज़ारते हैं
सोती वसुन्धरा जब तुझको पुकारते हैं
इनके लिये कहीं से निर्भीक तेज ला दे
पिघले हुए अनल का इनको अमृत पिला दे
उन्माद, बेकली का उत्थान माँगता हूँ
विस्फोट माँगता हूँ, तूफान माँगता हूँ
आँसू भरे दृगों में चिनगारियाँ सजा दे
मेरे शमशान में आ श्रंगी जरा बजा दे
फिर एक तीर सीनों के आरपार कर दे
हिमशीत प्राण में फिर अंगार स्वच्छ भर दे
आमर्ष को जगाने वाली शिखा नयी दे
अनुभूतियाँ हृदय में दाता, अनलमयी दे
विष का सदा लहू में संचार माँगता हूँ
बेचैन जिन्दगी का मैं प्यार माँगता हूँ
ठहरी हुई तरी को ठोकर लगा चला दे
जो राह हो हमारी उसपर दिया जला दे
गति में प्रभंजनों का आवेग फिर सबल दे
इस जाँच की घड़ी में निष्ठा कड़ी, अचल दे
हम दे चुके लहु हैं, तू देवता विभा दे
अपने अनलविशिख से आकाश जगमगा दे
प्यारे स्वदेश के हित वरदान माँगता हूँ
तेरी दया विपद् में भगवान माँगता हूँ
*~*Dhaval*~*....Ek Ehsaas...
|
|
|
|
|
Shayri.com Moderator
Offline
Posts: 10,551
Join Date: Aug 2006
Location: INDIA
Rep Power: 59
|
13th July 2015, 03:52 PM
माँ | सुशांत सुप्रिय की कविता - सुशांत सुप्रिय
इस धरती पर
अपने शहर में मैं
एक उपेक्षित उपन्यास के बीच में
एक छोटे-से शब्द-सा आया था
वह उपन्यास
एक ऊँचा पहाड़ था
मैं जिसकी तलहटी में बसा
एक छोटा-सा गाँव था
वह उपन्यास
एक लंबी नदी था
मैं जिसके बीच में स्थित
एक सिमटा हुआ द्वीप था
वह उपन्यास
पूजा के समय बजता हुआ
एक ओजस्वी शंख था
मैं जिसकी ध्वनि-तरंग का
हज़ारवाँ हिस्सा था
हालाँकि वह उपन्यास
विधाता की लेखनी से उपजी
एक सशक्त रचना थी
आलोचकों ने उसे
कभी नहीं सराहा
जीवन के इतिहास में
उसका उल्लेख तक नहीं हुआ
आख़िर क्या वजह है कि
हम और आप
जिन महान् उपन्यासों के
शब्द बनकर
इस धरती पर आए
उन उपन्यासों को
कभी कोई पुरस्कार नहीं मिला ?
*~*Dhaval*~*....Ek Ehsaas...
|
|
|
|
|
Shayri.com Moderator
Offline
Posts: 10,551
Join Date: Aug 2006
Location: INDIA
Rep Power: 59
|
13th July 2015, 03:53 PM
नाग की बाँबी खुली है आइए साहब - ऋषभदेव शर्मा
नाग की बाँबी खुली है आइए साहब
भर कटोरा दूध का भी लाइए साहब
रोटियों की फ़िक्र क्या है? कुर्सियों से लो
गोलियाँ बँटने लगी हैं खाइए साहब
टोपियों के हर महल के द्वार छोटे हैं
और झुककर और झुककर जाइए साहब
मानते हैं उम्र सारी हो गई रोते
गीत उनके ही करम के गाइए साहब
*~*Dhaval*~*....Ek Ehsaas...
|
|
|
|
|
Moderator
Offline
Posts: 5,211
Join Date: Jul 2014
Rep Power: 28
|
13th July 2015, 05:42 PM
Bahut achcha thread hai ye to dhaval ji..sabhi logon ne bahut sundar rachnayein share ki hain...shukriya ise samne lane ke liye....
अर्ज मेरी एे खुदा क्या सुन सकेगा तू कभी
आसमां को बस इसी इक आस में तकते रहे
madhu..
|
|
|
Posting Rules
|
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts
HTML code is Off
|
|
|
Powered by vBulletin® Version 3.8.5 Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
vBulletin Skin developed by: vBStyles.com
|
|