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Originally Posted by ruchika
ऐ ज़िन्दगी थोड़ा तो सब्र कर....
थक गयी हूँ तय करते करते यूँ सफर ...
कहीं तो थम …कहीं तो ठहर.....
ऐ ज़िन्दगी थोड़ा तो सब्र कर....
बीती जा रही है यूँ ही उम्र मेरी...
खोज में तलाश ऐ सुकन… राहत ऐ मर्ज़ की …
कुछ तो इसकी मदद कर....
ऐ ज़िन्दगी थोड़ा तो सब्र कर....
मिटती जा रही है लकीरें इन हाथों की...
बढ़ती जा रही है माथे की शिकन...
कुछ तो इन लक्कीरों की कद्र कर….
ऐ ज़िन्दगी थोड़ा तो सब्र कर....
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waah ruchika ji..zindi kahaan thamti hai kisike liye kab sabra karti hai....
likhti rahiye....