|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
Registered User
Offline
Posts: 2,628
Join Date: Jul 2002
Location: New Delhi
Rep Power: 34
|
- जीवन - -
9th December 2014, 05:23 PM
इस जीवन की सच्चाई को
में जान नहीं पाता हूँ,
जितना भी उतरता हूँ इसमें,
इसे और गहरा सा पाता हूँ।
रिश्ते-नाते, सुख-दुःख सब
एक ही माला में पिरोये से हैं,
एक मनके के स्थानांतरण मात्र से
ये माला सहेज सी नहीं पाता हूँ।
हर एक अनिश्चतता से घिरा है,
प्रत्येक का अपना अपना धड़ा है,
किसी के कुछ निकट रहता हूँ तो,
कुछ को दूर क्षितिज पर पाता हूँ।
सब अपने से राग सुनाते हैं,
बस अपनी ही ढपली बजाते हैं,
क्या सुनुँ, कुछ भी तो कर्णप्रिय नहीं,
एक अनोखी विडंबना में घिर जाता हूँ।
यदपि इस आकाश में युगों से हूँ, किन्तु
धुरी-परिक्रमा कुछ भी समझ न पाता हूँ,
चन्द्र होने का अभिमान है, धरा फिर भी,
में तेरा मोह अपितु त्याग नहीं पाता हूँ।
- चाँद
Sachh bolne ka hausla to, hum bhi rakhte haiN lekin
Anjaam sochkar, aksar khaamosh hi reh jaate haiN.
- Chaand
|
|
|
|
|
~$uper M0der@tor~
Offline
Posts: 8,417
Join Date: Feb 2006
Rep Power: 61
|
9th December 2014, 08:48 PM
Quote:
Originally Posted by Chaand
इस जीवन की सच्चाई को
में जान नहीं पाता हूँ,
जितना भी उतरता हूँ इसमें,
इसे और गहरा सा पाता हूँ।
रिश्ते-नाते, सुख-दुःख सब
एक ही माला में पिरोये से हैं,
एक मनके के स्थानांतरण मात्र से
ये माला सहेज सी नहीं पाता हूँ।
हर एक अनिश्चतता से घिरा है,
प्रत्येक का अपना अपना धड़ा है,
किसी के कुछ निकट रहता हूँ तो,
कुछ को दूर क्षितिज पर पाता हूँ।
सब अपने से राग सुनाते हैं,
बस अपनी ही ढपली बजाते हैं,
क्या सुनुँ, कुछ भी तो कर्णप्रिय नहीं,
एक अनोखी विडंबना में घिर जाता हूँ।
यदपि इस आकाश में युगों से हूँ, किन्तु
धुरी-परिक्रमा कुछ भी समझ न पाता हूँ,
चन्द्र होने का अभिमान है, धरा फिर भी,
में तेरा मोह अपितु त्याग नहीं पाता हूँ।
- चाँद
|
bahot khoob Chaand bhai... bahot gahraai se aapne apne jazbaat pesh kiye hain....... meri taraf se aapko bahot bahot mubaarakbaad...
likhte rahiyegaa
Shaad.....
|
|
|
|
|
Registered User
Offline
Posts: 1,239
Join Date: Jul 2004
Location: India
Rep Power: 0
|
10th December 2014, 07:57 PM
Chaand ji
A beautiful poetry.The quoted lines are the best......A perfect combination of science and poetry.Jeevan ka saar..bahut khoobsurat rachna....daad kabul kijeyega.
Regards
Sukanya
Quote:
यदपि इस आकाश में युगों से हूँ, किन्तु
धुरी-परिक्रमा कुछ भी समझ न पाता हूँ,
चन्द्र होने का अभिमान है, धरा फिर भी,
में तेरा मोह अपितु त्याग नहीं पाता हूँ।
- चाँद
|
|
|
|
|
|
Registered User
Offline
Posts: 2,628
Join Date: Jul 2002
Location: New Delhi
Rep Power: 34
|
10th December 2014, 08:33 PM
sameer ji, sukanya ji, aap donoN ka tahe dil se shukriya, meri is koshish ko sarahne or is hausla afzaai ke liye....
Dhanyawaad ek baar phir se.
Sachh bolne ka hausla to, hum bhi rakhte haiN lekin
Anjaam sochkar, aksar khaamosh hi reh jaate haiN.
- Chaand
|
|
|
|
|
Member
Offline
Posts: 1,477
Join Date: Oct 2012
Location: Delhi .. ovalswitches@gmail.com
Rep Power: 26
|
11th December 2014, 07:13 AM
Nihayat khoobsoorti se bayan ki aap nein Zindgari ki sachchai , bahut kamal
ka dhara pravah tha aap ki is Rachna mein ..Daad kabool karein.
Sanjay Sehgal
khone Pane ki daur mein yun uljha hai har bashar ,
Isee kashmeqash mein kat raha Zindagee ka safar.
|
|
|
|
|
Moderator
Offline
Posts: 5,211
Join Date: Jul 2014
Rep Power: 28
|
11th December 2014, 11:39 AM
Quote:
Originally Posted by Chaand
इस जीवन की सच्चाई को
में जान नहीं पाता हूँ,
जितना भी उतरता हूँ इसमें,
इसे और गहरा सा पाता हूँ।
रिश्ते-नाते, सुख-दुःख सब
एक ही माला में पिरोये से हैं,
एक मनके के स्थानांतरण मात्र से
ये माला सहेज सी नहीं पाता हूँ।
हर एक अनिश्चतता से घिरा है,
प्रत्येक का अपना अपना धड़ा है,
किसी के कुछ निकट रहता हूँ तो,
कुछ को दूर क्षितिज पर पाता हूँ।
सब अपने से राग सुनाते हैं,
बस अपनी ही ढपली बजाते हैं,
क्या सुनुँ, कुछ भी तो कर्णप्रिय नहीं,
एक अनोखी विडंबना में घिर जाता हूँ।
यदपि इस आकाश में युगों से हूँ, किन्तु
धुरी-परिक्रमा कुछ भी समझ न पाता हूँ,
चन्द्र होने का अभिमान है, धरा फिर भी,
में तेरा मोह अपितु त्याग नहीं पाता हूँ।
- चाँद
|
Bahut achcha likha hai chaand ji...bahut mubarak baad..
अर्ज मेरी एे खुदा क्या सुन सकेगा तू कभी
आसमां को बस इसी इक आस में तकते रहे
madhu..
|
|
|
Posting Rules
|
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts
HTML code is Off
|
|
|
Powered by vBulletin® Version 3.8.5 Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
vBulletin Skin developed by: vBStyles.com
|
|