कबसे इस मन को सजाये बैठे हैं महबूबा -
23rd October 2009, 06:25 PM
कबसे इस मन को सजाये बैठे हैं महबूबा
तेरे इंतज़ार में पलकें बिछाये बैठे हैं महबूबा
तेरे दीदार की तमन्ना लिए
नाजाने कबसे तेरे आने की आस लगाये हैं महबूबा
जाने तुम कब आओगी
कब तुम इस पगले के नैनों की प्यास बुझाओगी
जाने तुम कब आओगी
महबूबा अब करो न देर
ऐसा न हो के कहीं ज्यादा ही हो जाए देर
अब तो सुन लो ह्रदय की पुकार
मै ही नही ये फिजायें भी तुम्हे रही है पुकार
सब कर रही हैं तुम्हारा गुणगान
आ जाओ ना सजनी
तुम बिन सूने वन उपवन
सूना है संसार
आ जाओ मेरी महबूबा
Aapka Apna Ishk
'इश्क' के बदले इश्क चाहना तिजारत है
इज़हार किससे करें महबूब तो दिल में है
email: rkm179@gmail.com
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