13th October 2020, 10:47 PM
Kamaal ghazal hai ye.. Mubaarak ho
QUOTE=Taish;496943]सुबह तक शाम की उदासी है,
मुझ में आवाम की उदासी है।
रो पड़े देख कर लिफ़ाफ़ा वो,
मेरे पैग़ाम की उदासी है।।
दिन के हिस्से तमाम काम आये,
और फिर शाम की उदासी है।।
एक जो शाम थी बिछड़ने की,
अब भी उस शाम की उदासी है।
जाम पर जाम पी रहा हूं मैं,
और हर जाम की उदासी है।
देख हंसने लगा हूं मैं फिर से,
ये तो बस नाम की उदासी है।
इक तो मंज़िल ही थी उदास अपनी,
दूसरी गाम की उदासी है।
लोग कहने लगें मुझे पागल,
वरना किस काम की उदासी है।
[/QUOTE]
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