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Originally Posted by rahnuma
अमीर ए शहर की नज़र है उस पर सनम बेच दूं क्या
खुशियां खरीदनी हैं मुझको ग़म बेच दूं क्या
तमाम शहर ही झूठ की हिमायत कर रहाथा
सच लिखना मुश्किल है कलम बेच दूं क्या
इन सियासी लोगों के बहुत काम का है
मेरे अन्दर जितना भी है ख़म बेच दूं क्या
ये दिल इश्क की इबादत गाह था रहनुमा
अब वीरान है ये हरम बेच दूं क्या
................. رحنما..................
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Bahot khoob.............!!!!!!!