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Originally Posted by ruchika
राह-ए-उम्र के हर पड़ाव पर सोचते की …
बस अब ख़्वाहिशों का बोझ नहीं.. ऐ ज़िन्दगी…. ऐ ज़िन्दगी….
पर हर पल यूँ ही दौड़ती भागती..…
बिना थामे… क्यों समय सी…. ऐ ज़िन्दगी…. ऐ ज़िन्दगी…
यूँ चल-चल के क्यों थकती नहीं….
राहत-ए-वजूद ढूंढ़ती.. ऐ ज़िन्दगी…. ऐ ज़िन्दगी….
उम्र-ए-दराज़ की... हर मंज़िल को बखूबी पाने की ….
क्यों हसरत इतनी…. ऐ ज़िन्दगी…. ऐ ज़िन्दगी…
कभी आईने सी साफ दिखती… कभी कुछ बोझिल सी….
हर मोड़ पे…. एक नए सवाल सी…. ऐ ज़िन्दगी…. ऐ ज़िन्दगी….
कभी अपनी सी… कभी परायी सी……
क्यों बेरुखी इतनी….. ऐ ज़िन्दगी…. ऐ ज़िन्दगी….
क्यों बेरुखी इतनी ….. ऐ ज़िन्दगी…. ऐ ज़िन्दगी...
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bahut khub ruchika ji
par ye hasratai aur khwaab agar bane rahenge, to zindagi berukhi nahi ek rangbirangi titli see lagegi idhar se udhar eak bagiya se dusri bagiya tak udti hui aur phoolon ka ras pitee hui.