Webeater
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1st July 2020, 01:26 AM
माँ के घर बिटिया जन्मे... बिटिया के घर माँ...
बुने हुए स्वेटर में, अनपढ़ माँ ने भेजा है पैगाम,
देहरी आँगन द्वार बुलाते, कब आएगी अपने गाँव
अरसा बीता ब्याह हुए, क्या अब भी आती मेरी याद,
कैसी है तू? धड़क रहा मन, लौटी न बरसों के बाद|
मोर, कबूतर अब भी छत पर, दाना चुगने आते है,
बरसाती काले बादल तेरा, पता पूछकर जाते है|
रात की रानी की खुशबू में, तेरी महक समायी है,
हवा चले तो यूँ लगता है, जैसे बिटिया आई है|
आज भी ताज़ा लगते है, हल्दी के थापे हाथों के,
एक-एक पल याद मुझे, तेरे बचपन की बातों के|
सीवन टूटी जब कपड़ो की, या उधडी जब तुरपाई,
कभी तवे पर हाथ जला जब, अम्मा तेरी याद आई|
छोटी-छोटी लोई से मैं, सूरज चाँद बनाती थी,
जली-कटी उस रोटी को तू, बड़े चाव से खाती थी|
जोधपुरी बंधेज सी रोटी, हाथ पिसा मोटा आता,
झूमर था भाई-बहनों क़ा, कौर-कौर सबने बांटा|
गोल झील सी गहरी रोटी, उसमे घी क़ा दर्पण था,
अन्नपूर्णा आधी भूखी, सब कुटुंब को अर्पण था|
अब समझी मैं भरवां सब्जी, आखिर में क्यूँ तरल हुई,
जान लिया है माँ बनकर ही, औरत इतनी सरल हुई|
ज्ञान हुआ खूंटे की बछिया, क्यूँ हर शाम रंभाती थी,
गैया के थन दूध छलकता, जब जंगल से आती थी|
मेरे रोशनदान में भी अब, चिड़िया अंडे देती है,
खाना-पीना छोड़ उन्हें फिर, बड़े प्यार से सेती है|
गाय नहीं पर भूरी कुतिया, बच्चें देने वाली है,
शहर की इन सूनी गलियों में रौनक छाने वाली है|
मेरे ही अतीत की छाया, इक सुन्दर सी बेटी है,
कंधे तक तो आ पहुंची, मुझसे थोड़ी छोटी है|
यूँ भोली है लेकिन थोड़ी, जिद्दी है मेरे जैसी,
चाहा मैंने न बन पायी, मैं खुद भी तेरे जैसी|
अम्मा तेरी मुनिया के भी, पकने लगे रेशमी बाल,
बड़े प्यार से तेल रमाकर, तूने की थी सार-संभाल|
जब से गुडिया मुझे छोड़, परदेस गयी है पढने को,
उस कुम्हार सी हुई निठल्ली, नहीं बचा कुछ गढ़ने को|
तुने तो माँ बीस बरस के, बाद मुझे भेजा ससुराल,
नन्ही बच्ची देस पराया, किसे सुनाऊं दिल क़ा हाल|
तेरी ममता की गर्मी, अब भी हर रात रुलाती है,
बेटी की जब हूक उठे तो, याद तुम्हारी आती है|
जन्म दुबारा तेरी कोख से, तुझसा ही जीवन पाऊं,
बेटी हो हर बार मेरी फिर उसमें खुद को दोहराऊं|
-मुन्नी शर्मा
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