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Originally Posted by NakulG
मेज़ के नीचे फटे कागज़ पड़े हैं,
अल्फ़ाज़ मेरे रात भर मुझ से लड़े हैं !!
मेरी भलाई में वो मुफलिस हो गया है,
फैसले उसने लिए अक्सर कड़े हैं !!
संगमरमर भी तो आखिर पथ्थर ही है !!
शबाहत उसकी, जिसने ये पथ्थर गढ़े हैं !!
दश्त से अब काग वो भी जा चूका है ,
कंकड़ों के बीच अब सूखे घड़े हैं !!
हम कभी खेला किये जिस खेत में,
मिलकियत पे इसकी अब मसले खड़े हैं !!
उँगलियों में हुस्न है जज़्बात का,
उसकी नीयत में कईं हीरे जड़े हैं !!
हर्फ़-ओ-कागज़ का नहीं है मुंतज़िर,
ख़िश्त के खांचों में बस किस्से पढ़े हैं !!
बागबां से पूछिये क्या हाल-ए-दिल 'नकुल',
आज फिर से बाग़ में पत्ते झड़े हैं !!
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wah wah bohat khoob Nakul ji..kya shaandar peshkash hai...
Welcome to shayri.com. .
ummeed hai is site per aapka yeh safar khushgawaar guzrega. ..
aapse do requests hain.....
1..apne baare me kuch bataiye introduction forum per
2.apni tahreer roman hindi me bhi post kijiye taaki sabhi members aapki ghazal ka lutf utha sake. ..