वो अक्स हमारा निकला...॥ -
15th March 2020, 08:48 AM
Ek tarhi ghazal pesh e kismat uai, firaq saahib ke misre pe....
कल शबे वस्ल कोई हिज्र का मारा निकला।
गौर से देखा तो वो अक्स हमारा निकला॥
कोई हसरत नहीं गुज़री मेरे दिल से हो कर,
आपको देख लिया और सफ़ आरा निकला॥
आइने को कभी देखें बड़ी ख़्वाहिश थी हमें,
दरमियां से ना मगर अक्स हमारा निकला॥
फूल तो फूल यहाँ जल गयी खुशबू तेरी,
आंखों से जब कोई यादों का शरारा निकला॥
ज़र्रे-ज़र्रे में तुझे ज़ीनते महफ़िल देखा,
“तुझ से ऎ दिल ना मगर काम हमारा निकला॥“
मैकशी, रंज, दवा काम नहीं आये कुछ,
दर्द ही दर्द के मारों का सहारा निकला॥
नक्शे पा इतने उभरने लगे हैं यादों के,
जैसे दिल कोई समन्दर का किनारा निकला...
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