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Originally Posted by brijbhan singh
तुम रूठे हो तुम्हे मनाये कैसे
कितना चाहते है तुम्हे बताये कैसे
थोड़ी बहुत नोकझोक तो चलती है जनाब
अब तुम्हारी तरह बात बात पर मुंह फुलाए कैसे
माना तुम गुस्से मे और भी लाजवाब लगते हो
अब हर बात पर तुम्हे गुस्सा दिलाये कैसे
माना थोड़ी सी नकचढ़ी हो गई हो तुम
पर अब तुमसे पीछा छुड़ाए कैसे
प्रेम तो अथाह और अपार है तुमसे
पर तुम्हे इस बात का यकीन दिलाये कैसे
जुड़े हुए है तुमसे कुछ तार हमारे
अब उन तारो से सुरमयी सितार बजाये कैसे
दूर होकर भी कितने पास है हम
पर इस दूरी को घटाए कैसे
ब्रज की हर गुस्ताखी को हर बार भूल जाते हो
पर हम तुम्हारी मनोहर मुस्कान भुलाये कैसे
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bahut achcha laga brij ji..bahot pyaar bhari rachna pesh ki hai aapne..bilkul dil se....bhai ye roothne manane me hee maza hai ...to koshish zari rakhiye..
Aur likhte rahiye..aur haan zara jaldi jaldi aaya karein...
Take care