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Originally Posted by Azaz AHMAD
हद से ज्यादा मेरी जिंदगी में खम आ गये है
न चाहते हुए भी मेरे हिस्से में ग़म आ गये है
दुआ में माँगी थी जिस शख्स की खुशी मेने
मेरे नसीब में उसी के सारे सितम आ गये है
वो घर से निकले थे लोगो के रहबर बनकर
अब खुद ही पुछते है, ये कहाँ हम आ गये है
अब गिर ही पडेंगे हम शायद शाखे-बुलंदी से
बहारों के बाद खिजांओ के मौसम आ गये है
कोई हाल नही पूछेगा तुम्हारा यहाँ पर शदीद
ईस बस्ती में अब रेहने को बेरहम आ गये है
..Azaz AHMAD..
"SHADEED"
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waah janaab bahot hi khoobsurat peshkash hai..... likhte rahen.
कोई हाल नही पूछेगा तुम्हारा यहाँ पर शदीद
ईस बस्ती में अब रेहने को बेरहम आ गये है