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Originally Posted by khamosh_lamhe
तमाम हो रही है ज़िन्दगी लम्हों के गुजरने के अहसास के साथ
पुकारती है धड़कने तन्हाई में दर्द को पलकों के पास
अजनबी हो रही है मंजिल हमसफ़र के क़दमों की आहट के साथ
गुजरती है सांसें खुशियों के रास्ते लबों के पास
खामोश हो रही है रातें ख्वाबों के सो जाने की उम्मीद के साथ
उठती है लहरें शब्-भर सीने पे नींद के पास
गुमशुदा हो रही है चाहतें तलाश-ऐ-आरज़ू के फ़ना होने के साथ
जलती है शमा हर बार इंतजार में परवाने के पास
हो रही है बेवफा यादें वादों के टूट के बिखरने के साथ
सिसकती है चांदनी चाँद के पहलू में सितारों के पास
हो रही है बेमतलब दुनिया "नाम" के जमीदोश होने के साथ
मुस्कुराती है मौत जन्नत की दहलीज़ पे कफ़न के पास
अशोक "नाम"
एक अनजान सफर का बे-नाम मुसाफ़िर॰॰॰
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Bahut khoob ashokji aapka bhi jawab nahi,,,,,,,,,,bahut achcha likha he aapne......Thanks for share with us,,,,,,,,,,,