टूटा हुआ पत्ता और जीवन -
6th June 2021, 03:43 PM
आज एक और पत्ता झड़ गया अपनी टहनी से
ना ना कोई सूखा पत्ता नही था ये
ना ही है कोई पतझड़ का मौसम ये
ये तो एक हरा भरा पत्ता था
और अभी तो पूरी तरह पनपा भी नही था
एक बसन्त भी उसने अभी देखा नहीं था
सोच रहा था वो अकेले बैठे
खिड़की से बाहर उस पत्ते को देखते
शायद फिर किसी शून्य में झाँकते
आंखे थी उसकी कुछ सूनी सी
हाथ में थी एक तस्वीर कुछ गीली सी
कहानी उसमें छुपी थी कोई मर्मभेदी
जिसे सुनाने को शायद नहीं था कोई उसके पास
न ही थी शायद उसके साथ अब और कोई भी आस
यह सब शायद कोई भी तो जानता नहीं था
बस वो अकेला मायूस सा बैठा कुछ सोचता था
और गौर से टूटे हुए पत्ते को देखता था
नहीं था कतई यह एहसास उसको
कि नहीं था अकेला वो पत्ता टूटने वाला
न ही था अकेला वो लुटने वाला
हर कोई है आज यहाँ टूटा हुआ
हर कोई है आज यहाँ लुटा हुआ
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