किसी को नहीं अब किसी की पड़ी है... -
3rd March 2017, 03:20 PM
ज़माने की फितरत हुई कुछ नयी है,
सही अब ग़लत और ग़लत ही सही है…
किसी को नहीं अब किसी की पड़ी है,
यही ज़िंदगी है तो क्या ज़िंदगी है…
गयी बीत सादियां यहां जाने कितनी,
मिज़ाजे सितमगर वही का वही है…
करें बातें मुझसे वो अब ज़िंदगी की,
बची जब मेरे पास बस दो घड़ी है…
कभी एक दिल था, अभी लाखों टुकड़े,
तेरे सदके सीने में रौनक बड़ी है…
यहाँ मैं हूँ तालाब सूखा हुआ इक,
वहाँ तू उफ़नती, मचलती नदी है…
मुझे चाहतों की नज़र से न देखो,
मुहब्बत की मुझे अब ज़रूरत नही है…
जो कल तक मेरा हमसफ़र, हमनवा था,
वही आज क्यूं लग रहा अजनबी है…
बदलता है मौसम, बदलते सभी हैं,
मगर ‘तैश’ वो जो बदलता नहीं है…
—तैश
Last edited by Taish; 3rd March 2017 at 03:29 PM..
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