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क़ैफ़ भोपाली के कुछ क़लाम
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gjgjgj
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Thumbs up क़ैफ़ भोपाली के कुछ क़लाम - 10th November 2006, 11:14 AM

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दाग़ दुनिया ने दिये ज़ख़्म ज़माने से मिले
हम को ये तोहफ़े तुम्हें दोस्त बनाने से मिले

हम तरसते ही तरसते ही तरसते ही रहे
वो फ़लाने से फ़लाने से फ़लाने से मिले

ख़ुद से मिल जाते तो चाहत का भरम रह जाता
क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले

कैसे माने के उन्हें भूल गया तू ऐ 'क़ैफ़'
उन के ख़त आज हमें तेरे सरहाने से मिले

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तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है

तिरछे तिरछे तीर नज़र के लगते हैं
सीधा सीधा दिल पे निशाना लगता है

आग का क्या है पल दो पल में लगती है
बुझते बुझते एक ज़माना लगता है

सच तो ये है फूल का दिल भी छलनी है
हँसता चेहरा एक बहाना लगता है

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झूम के जब रिंदों ने पिला दी
शेख़ ने चुपके चुपके दुआ दी

एक कमी थी ताज महल में
हमने तेरी तस्वीर लगा दी

आप ने झूठा वादा कर के
आज हमारी उम्र बड़ा दी

तेरी गली में सज्दे कर के
हमने इबादतगाह बना दी

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कौन आयेगा यहाँ कोई न आया होगा
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा

दिल-ए-नादाँ न धड़क, ऐ दिल-ए-नादाँ न धड़क
कोई ख़त लेके पड़ोसी के घर आया होगा

गुल से लिपटी हुई तितली को गिराकर देखो
आँधियों तुम ने द्रख़्तों को गिराया होगा

'क़ैफ़' परदेस में मत याद करो अपना मकाँ
अब के बारिश में उसे तोड़ गिराया होगा

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Shayri,
Ek Andaz..
Ek Koshish
By Gaurav
   
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