वो लम्हे -
13th March 2024, 12:33 AM
पतंग की तरह खो गये
हवा की तरह हो गये
रास्तों ने जगाया तो
मंजिल की तरह सो गये
ढूूँढू भी तो कहाँ ढूँढू अब
वो लम्हे न जाने कहाँ चले गये
ढूँढा था तकिये के नीचे भी
पन्नों के बीच में भी खोजा था
मिले फिर् पुराने खत में तो
आंसुओं के साथ बह गये
ढूूँढू भी तो कहाँ ढूँढू अब
वो लम्हे न जाने कहाँ चले गये
खुशबू की तरह खो गये
तितली की तरह हो गये
ख्वाबों ने जगाया तो
नींद की तरह सो गये
दिखे थे पुरानी शर्ट की जेब में
खंगाला पर्स तो कोने में दुबके थे
खोली जो पुरानी डायरी तो
नज़्मों के साथ वहीं रह गये
ढूूँढू भी तो कहाँ ढूँढू अब
वो लम्हे न जाने कहाँ चले गये
चांद की तरह खो गये
अन्धेरे की तरह हो गये
जुगनुओं ने जगाया तो
रात की तरह सो गये
घूरते दिखे कभी तस्वीरों से तो
कभी खाली कमरे में बतियाते मिले
लेटे कभी बिस्तर में तो
सिलवट बन कर् रह गये
ढूूँढू भी तो कहाँ ढूँढू अब
वो लम्हे न जाने कहाँ चले गये
एक हाथ में दिल उनके एक हाथ में खंजर था
चेहरे पे दोस्त का मुखौटा अजीब सा मंजर था
Arvind Saxena
Ph. No. 7905856220
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