वो जब मेरे पॉकेट, मेरे फ़ोन, मेरी डायरी
मुझसे नज़रें बचाकर खंगालती है,
तो मुझे गुस्सा नहीं आता
में उससे शिकायत भी नहीं जताता,
ये सोचकर के वो शायद,
मुझे अपना समझने लगी है,
अबतक तो इस रिश्ते को स्वीकार भी नहीं करती थी,
मुझसे और मेरे वुजूद से कुछ फासले से गुजरती थी,
इन फासलों को अब वो आहिस्ता से मिटाने लगी है,
चलो देर से ही सही, वो पास तो आने लगी है!
- चाँद
Sachh bolne ka hausla to, hum bhi rakhte haiN lekin
Anjaam sochkar, aksar khaamosh hi reh jaate haiN.
वो जब मेरे पॉकेट, मेरे फ़ोन, मेरी डायरी
मुझसे नज़रें बचाकर खंगालती है,
तो मुझे गुस्सा नहीं आता
में उससे शिकायत भी नहीं जताता,
ये सोचकर के वो शायद,
मुझे अपना समझने लगी है,
अबतक तो इस रिश्ते को स्वीकार भी नहीं करती थी,
मुझसे और मेरे वुजूद से कुछ फासले से गुजरती थी,
इन फासलों को अब वो आहिस्ता से मिटाने लगी है,
चलो देर से ही सही, वो पास तो आने लगी है!
- चाँद
namaskaar chaand jii....aapke khyaal dil ko chhoo lene wale hain....ek muskaan chha gayi chehre par inhe padhte huye..bahut khooooob...
aate rahiyega....
अर्ज मेरी एे खुदा क्या सुन सकेगा तू कभी
आसमां को बस इसी इक आस में तकते रहे
madhu..
वो जब मेरे पॉकेट, मेरे फ़ोन, मेरी डायरी
मुझसे नज़रें बचाकर खंगालती है,
तो मुझे गुस्सा नहीं आता
में उससे शिकायत भी नहीं जताता,
ये सोचकर के वो शायद,
मुझे अपना समझने लगी है,
अबतक तो इस रिश्ते को स्वीकार भी नहीं करती थी,
मुझसे और मेरे वुजूद से कुछ फासले से गुजरती थी,
इन फासलों को अब वो आहिस्ता से मिटाने लगी है,
चलो देर से ही सही, वो पास तो आने लगी है!
- चाँद
Umdaa khayaal huye hai chaand bhai yunhi likhte rahiYeGaa
Qasid
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नाम-ए-वफ़ा की जफ़ा बताएं
क्या है ज़हन में क्या बोल जाएँ
रफ़्तार-ए-दिल अब थम सी गयी है
'क़ासिद' पर अब है टिकी निगाहें